क्या वाक़ई जरूरी रह गयी है भारत मे लोकतंत्र....
क्या जनता को ईस लोकतंत्र का हिस्सा बनना जरूरी है ....
जनता क्या चाहती है वाकई अब इसकी किसी को परवाह है.....
जिस तरह से भारतीय लोकतंत्र पिछले कुछ वर्षों से चल रही है... अरे छोड़िए साहब पिछली रात की ही बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि लोकतंत्र में लोगों की भागीदारी कितनी जरूरी रह गया है।
चुनाव .....हाँ हाँ वही चुनाव जिसमें कहा जाता है कि जनता जनार्दन होती है वही जो चाहेगी वो होगा ।
महीनों भर लाइन में लग कर वोट देना, वोट में करोड़ों रुपए खर्च करना क्या वाकई अब जरूरी रह गया है तो नही ....
अब जिसमे जितना है दम वही बनेगा बाजीराव पेशवा.... ओह्यो गलत हो गया क्या ....
हाँ आगे का रीमिक्स आप मिला लो क्योकि अब आपकी राय की इस राजनीति में कोई बात रह नही गयी है ।
अबतक क्या होता आया है उसका कोई लेना देना नही है जो इनको मन आएगा वही होगा ।
महाराष्ट्र की बात करे तो देख कर राजनीति की राजनीति बस अब बस हो गया राजनीति कहने को जी चाहता है।
अब तो बस यही दिल चाहता है इन बैठे आकाओं से की बाट लो इस देश को अपनी शक्तियों के हिसाब से जिसकी जितनी भुजाओं में बल है वो लेलो उतना बड़ा हिस्सा ।।
Gaurav के कलम से ।।